बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

Ph. D. Course Work//Synopsis Writing// Thesis Writing :: पी-एच डी कोर्सवर्क/शोध-प्रस्ताव लेखन/शोध-प्रबंध लेखन।।

(आपको इस ब्लॉग पर नियमित अपडेट मिलेगी, इसलिए आप इसका अवलोकन प्रतिदिन कर लीजिएगा।)

Ph.D. Course Work शोधकर्ता के लिए एक अनिवार्य पाठ्यक्रम है। कोर्सवर्क के बिना शोध का कोई महत्व नहीं रह जाता। अलग-अलग विश्वविद्यालय अपने अनुसार पाठ्यक्रम तय करके अध्ययन करवाते हैं। वैसे एम फिल का पाठ्यक्रम ही पी-एच डी कोर्सवर्क का पाठ्यक्रम होता है। इसलिए नियमित एम फिल उपाधि धारक को कोर्सवर्क से छूट रहती है।

कोर्सवर्क के दौरान ही शोध प्रस्ताव/प्रस्तावना/प्रारूप/सिनोप्सिस कैसे बनाएं ? यह भी बताया  जाता है। सिनोप्सिस या शोध-प्रस्ताव में क्या-क्या आना चाहिए ? यह महत्वपूर्ण बात है, इसकी जानकारी के अभाव में शोधार्थी सिनोप्सिस का निर्माण किसी भी सूरत में  नहीं कर सकता। यह कहने में छोटी सी बात  लगती  है लेकिन इसे समझने में कई दिन या कई महीने लग जाते हैं। 

सिनोप्सिस बनाने के लिए सर्वप्रथम शोध-शीर्षक की आवश्यकता होती है। अतः अपने शोध निर्देशक के साथ मिलकर शोध शीर्षक तय करें। शोध शीर्षक की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? यह सिनोप्सिस की भूमिका में बताएं। 
सिनोप्सिस अर्थात् शोध-प्रस्ताव में  निम्नांकित बिन्दुओं का समावेश होना चाहिए-
1- भूमिका- शोध शीर्षक का इतिहास/ समीक्षा/आलोचना/समालोचना 
2- शोध समस्या या शोध की आवश्यकता 
3- साहित्यिक पुनरावलोकन
4- शोध के उद्देश्य 
5- शोध का क्षेत्र (डीलिमिटेशन/स्कोप ऑफ रिसर्च)
6- शोध का महत्व 
7- शोध की उपयोगिता 
8- शोध विधि/प्रविधियां 
9- शोध की कार्य योजना एवं प्रकरण विभाजन 
10- संदर्भ ग्रंथ सूची 

इसी प्रकार थीसिस/शोध-प्रबंध लेखन करते समय प्रथम अध्याय अथवा भूमिका लेखन में  भी शोध शीर्षक के इतिहास/समीक्षा/आलोचना/समालोचना आदि को स्थान देना चाहिए। भूमिका में संगठन के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए। सिनोप्सिस में दिए गए बिन्दुओं को भूमिका में  विस्तारपूर्वक लिखा जाना चाहिए। 

शोध की कार्य योजना का ब्यौरा लिखते समय शोधकार्य की प्रगति का ब्यौरा दिया जाता है। पहले वर्ष में कोर्सवर्क कक्षा अध्ययन, विभिन्न असाइन्मेंट तैयार करना, कोर्सवर्क परीक्षा देना, विभिन्न पीपीटी तैयार करना, क्रिटीकल रिव्यू लिखना, सिनोप्सिस तैयार करना आदि की तैयारी के बारे में लिखा जाएगा। दूसरे वर्ष में शोधकार्य के फिल्डवर्क, भूमिका लेखन, संदर्भ साहित्य का पुनरावलोकन करने आदि का ब्यौरा दिया जाता है। तीसरे वर्ष में शोधकार्य से संबंधित शेष कार्य को पूर्ण करने का ब्यौरा दिया जाता है।


शोध : अर्थ एवं परिभाषा

शोध (Research)

•      शोध उस प्रक्रिया अथवा कार्य का नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्राही एवं विवेचक बुद्धि से उसका अवलोकन- विश्‌लेषण करके नए तथ्यों या सिद्धांतों का उद्‌घाटन किया जाता है।

•      रैडमैन और मोरी ने अपनी किताब  “दि रोमांस ऑफ रिसर्च” में शोध का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है, कि नवीन ज्ञान की प्राप्ति के व्यवस्थित प्रयत्न को हम शोध कहते हैं।

•      एडवांस्ड लर्नर डिक्शनरी ऑफ करेंट इंग्लिश के अनुसार- किसी भी ज्ञान की शाखा में नवीन तथ्यों की खोज के लिए सावधानीपूर्वक किए गए अन्वेषण या जांच- पड़ताल को शोध की संज्ञा दी जाती है।

•      स्पार और स्वेन्सन ने शोध को परिभाषित करते हुए अपनी पुस्तक में लिखा है कि कोई भी विद्वतापूर्ण शोध ही सत्य के लिए, तथ्यों के लिए, निश्चितताओं के लिए अन्चेषण है।

•      वहीं लुण्डबर्ग ने शोध को परिभाषित करते हुए लिखा है, कि अवलोकित सामग्री का संभावित वर्गीकरण, साधारणीकरण एवं सत्यापन करते हुए पर्याप्त कर्म विषयक और व्यवस्थित पद्धति है।

शोध के अंग

·       ज्ञान क्षेत्र की किसी समस्या को   सुलझाने की प्रेरणा

·        प्रासंगिक तथ्यों का संकलन

·       . विवेकपूर्ण विश्लेषण और अध्ययन

·       परिणाम स्वरूप निर्णय

शोध का महत्त्व

•      शोध मानव ज्ञान को दिशा प्रदान करता है तथा ज्ञान भंडार को विकसित एवं परिमार्जित करता है।

•शोधसे व्यावहारिक समस्याओं का समाधान होता है।                                                               

•      शोध से व्यक्तित्व का बौद्धिक विकास होता है                                                                   

•      शोध सामाजिक विकास का सहायक है                                                                             

•       शोध जिज्ञासा मूल प्रवृत्ति   (Curiosity Instinct) की संतुष्टि करता है 

•      शोध अनेक नवीन कार्य विधियों व उत्पादों को विकसित करता है                                             

•      शोध पूर्वाग्रहों के निदान और निवारण में सहायक है                                                               

•       शोध ज्ञान के विविध पक्षों में गहनता और सूक्ष्मता प्रदान करता है।

शोध करने हेतु प्रयोग की जाने वाली पद्धतियाँ

·       सर्वेक्षण पद्धति (Survey method)

·         आलोचनात्मक पद्धति (Critical Method):

·        समस्यामूलक पद्धति (Problem based method)

·        तुलनात्मक पद्धति (Comparative method)

·       वर्गीय अध्ययण पद्धति (Class based method)

·       क्षेत्रीय अध्ययन पद्धति (Regional method)

·       आगमन(induction)-

·       निगमन (Deduction)  पद्धति

आलोचनात्मक पद्धति (Critical Method)

·       काव्यशास्त्रीय पद्धति  (aesthetic/poetics method)

·       समाजशास्त्रीय पद्धति (Sociological method)

·        भाषावैज्ञानिक पद्धति  (Linguistic method)

·       शैली वैज्ञानिक पद्धति (Stylistic method)

·       मनोवैज्ञानिक पद्धति (Psychological method)

शोध के प्रकार

उपयोग के आधार पर

1. विशुद्ध / मूल शोध    (Pure / fundamental Research)

2. प्रायोगिक /प्रयुक्त या क्रियाशील शोध (Applied Research)

काल के आधार पर

·       ऎतिहासिक शोध (Historical Research)

·        वर्णनात्मक / विवरणात्मक शोध  (Descriptive Research)

शोध के कुछ मुख्य प्रकार-

1. वर्णनात्मक शोध-  शोधकर्ता का चरों (variables) पर नियंत्रण नहीं होता। सर्वेक्षण पद्धति का प्रयोग होता है। वर्तमान समय का वर्णन होता है। मूल प्रश्न होता है: “क्या है?”

2. विश्लेषणात्मक शोध (Analytical Research) – शोधकर्ता का चरों (variables) पर नियंत्रण होता है। शोधकर्ता पहले से उपलब्ध सूचनाओं व तथ्यों का अध्ययन करता है।

3. विशुद्ध / मूल शोध  - इसमें सिद्धांत (Theory) निर्माण होता है जो ज्ञान का विस्तार करता है। गणित तथा मूल विज्ञान के शोध।

4. प्रायोगिक / प्रयुक्त शोध (Applied Research): समस्यामूलक पद्धति का उपयोग होता है। किसी सामाजिक या व्यावहारिक समस्या का समाधान होता है। इसमें विशुद्ध शोध से सहायता ली जाती है।

5. मात्रात्मक शोध (Quantitative Research):  इस शोध में चरों (variables) का संख्या या मात्रा के आधार पर विश्लेषण किया जाता है।

6. गुणात्मक शोध (qualitative Research) :  इस शोध में चरों (variables) का उनके गुणों के आधार पर विश्लेषण  किया जाता है।

7. सैद्धांतिक शोध (Theoretical Research):  सिद्धांत निर्माण और विकास पुस्तकालय शोध या उपलब्ध डाटा के आधार पर किया जाता है।

8. आनुभविक शोध (Empirical Research):   इस शोध के तीन प्रकार हैं –

         क) प्रेक्षण (Observation)

         ख) सहसंबंधात्मक (Correlational)

          ग) प्रयोगात्मक (Experimental)

9. अप्रयोगात्मक शोध (Non-Experimental Research) –वर्णनात्मक शोध  के समान

10.  ऎतिहासिक शोध (Historical Research):  इतिहास को ध्यान में रख कर शोध होता है। मूल प्रश्न होता है: “क्या था?”

11.  नैदानिक शोध (Diagnostic / Clinical Research): समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है।

शोध प्रबंध की रूपरेखा

·       सही शीर्षक का चुनाव विषय वस्तु को ध्यान में रख कर किया जाए।

·       शीर्षक ऎसा हो जिससे शोध निबंध का उद्देश्य अच्छी तरह से स्पष्ट हो रहा हो।

·       शीर्षक न तो अधिक लंबा ना ही अधिक छोटा हो।

·       शीर्षक में निबंध में उपयोग किए गए शब्दों का ही जहाँ तक हो सके उपयोग हॊ।

·       शीर्षक भ्रामक न हो।

·       शीर्षक को रोचक अथवा आकर्षक बनाने का प्रयास होना चाहिए।

·       शीर्षक का चुनाव करते समय शोध प्रश्न को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।


शोध समस्या का निर्माण  चरण
(Formulation of research problem)

 समस्या का सामान्य व व्यापक कथन (Statement of the problem in a general way)

समस्या की प्रकृति को समझना  (Understanding the nature of the problem)

संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण  (Surveying the related literature)

परिचर्चा के द्वारा विचारों का विकास  (Developing the Ideas through discussion)

 शोध समस्या का पुनर्लेखन  (Rephrasing the research problem)

संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण
(Survey of related literature)

संबंधित साहित्य के सर्वेक्षण से तात्पर्य उस अध्ययन से है जो शोध समस्या के चयन के पहले अथवा बाद में उस समस्या पर पूर्व में किए गए शोध कार्यों, विचारों, सिद्धांतों, कार्यविधियों, तकनीक, शोध के दौरान होने वाली समस्याओं आदि के बारे में जानने के लिए किया जाता है।

संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण मुख्यत: दो प्रकार से किया जाता है:

1.    प्रारंभिक साहित्य सर्वेक्षण (Preliminary survey of literature)-प्रारंभिक साहित्य सर्वेक्षण शोध कार्य प्रारंभ करने के पहले शोध समस्या के चयन तथा उसे परिभाषित करने के लिए किया जाता है। इस साहित्य सर्वेक्षण का एक प्रमुख उद्देश्य यह पता करना होता है कि आगे शोध में कौन-कौन सहायक संसाधन होंगे।

2.    व्यापक साहित्य सर्वेक्षण (Broad survey of literature)-व्यापक साहित्य सर्वेक्षण शोध प्रक्रिया का एक चरण होता है। इसमें संबंधित साहित्य का व्यापक अध्ययन किया जाता है। संबंधित साहित्य का व्यापक सर्वेक्षण शोध का प्रारूप के निर्माण तथा डाटा/तथ्य संकलन के कार्य के पहले किया जाता



साहित्य सर्वेक्षण के स्रोत

·       पाठ्य पुस्तक और अन्य ग्रंथ

·       शोध पत्र

·       सम्मेलन / सेमिनार में पढ़े गए आलेख

·       शोध प्रबंध (Theses and Dissertations)

·       पत्रिकाएँ एवं समाचार पत्र

·       इंटरनेट

·       ऑडियो-विडियो

·       साक्षात्कार (Interviews)

·       हस्तलेख अथवा अप्रकाशित पांडुलिपि

परिकल्पना Hypothesis

जब शोधकर्ता किसी समस्या का चयन कर लेता है तो वह उसका एक अस्थायी समाधान (Tentative solution) एक जाँचनीय प्रस्ताव (Testable proposition) के रूप में करता है। इस जाँचनीय प्रस्ताव को तकनीकी भाषा में परिकल्पना/प्राक्‍कल्पना कहते हैं। इस तरह परिकल्पना / प्राकल्पना किसी शोध समस्या का एक प्रस्तावित जाँचनीय उत्तर होती है।

किसी घटना की व्याख्या करने वाला कोई सुझाव या अलग-अलग प्रतीत होने वाली बहुत सी घटनाओं को के आपसी सम्बन्ध की व्याख्या करने वाला कोई तर्कपूर्ण सुझाव परिकल्पना (hypothesis) कहलाता है। वैज्ञानिक विधि के नियमानुसार आवश्यक है कि कोई भी परिकल्पना परीक्षणीय होनी चाहिये।

सामान्य व्यवहार में, परिकल्पना का मतलब किसी अस्थायी विचार (provisional idea) से होता है जिसके गुणागुण (merit) अभी सुनिश्चित नहीं हो पाये हों। आमतौर पर वैज्ञानिक परिकल्पनायें गणितीय माडल के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। जो परिकल्पनायें अच्छी तरह परखने के बाद सुस्थापित (well established) हो जातीं हैं, उनको सिद्धान्त कहा जाता है।

परिकल्पना की विशेषताएँ

·       परिकल्पना को जाँचनीय होना चाहिए।

·       बनाई गई परिकल्पना का तालमेल (harmony) अध्ययन के क्षेत्र की अन्य    परिकल्पनाओं के साथ होना चाहिए।

·       परिकल्पना को मितव्ययी (parsimonious) होना चाहिए ।

·       परिकल्पना में तार्किक पूर्णता (logical unity) और व्यापकता का गुण होना चाहिए।

·       परिकल्पना को मितव्ययी (parsimonious) होना चाहिए।

·       परिकल्पना को अध्ययन क्षेत्र के मौजूदा सिद्धांतों एवं तथ्यों से संबंधित होना चाहिए ।

·       परिकल्पना को संप्रत्यात्मक (conceptual) रूप से स्पष्ट होना चाहिए।

·       परिकल्पना को अध्ययन क्षेत्र के मौजूदा सिद्धांतों एवं तथ्यों से संबंधित होना चाहिए ।

·       परिकल्पना से अधिक से अधिक अनुमिति (deductions) किया जाना संभव होना चाहिए तथा उसका स्वरूप न तो बहुत अधिक सामान्य होना चाहिए (general) और न ही बहुत अधिक विशिष्ट (specific)।

·       परिकल्पना को संप्रत्यात्मक (conceptual) रूप से स्पष्ट होना चाहिए: इसका अर्थ यह है कि परिकल्पना में इस्तेमाल किए गए संप्रत्यय /अवधारणाएँ (concepts) वस्तुनिष्ठ (objective) ढंग से परिभाषित होनी चाहिए।

परिकल्पना निर्माण के स्रोत

       i.            व्यक्तिगत अनुभव

     ii.            पहले किए शोध के परिणाम

  iii.            पुस्तकें, शोध पत्रिकाएँ, शोध सार आदि

   iv.            उपलब्ध सिद्धांत

     v.            निपुण विद्वानों के निर्देशन में


शोध प्रक्रिया के प्रमुख चरण

1.    अनुसंधान समस्या का निर्माण

2.    संबंधित साहित्य का व्यापक सर्वेक्षण

3.    परिकल्पना/प्राकल्पना (Hypothesis) का निर्माण

4.    शोध की रूपरेखा/शोध प्रारूप (Research Design) तैयार करना

5.    आँकड़ों का संकलन / तथ्यों का संग्रह

6.    आँकड़ो / तथ्यों का विश्‍लेषण

7.    प्राकल्पना की जाँच

8.    सामान्यीकरण एवं व्याख्या

9.    शोध प्रतिवेदन तैयार करना


शोध पत्र कैसे लिखें ?

एक शोध कर्त्ता जब अपना शोध कार्य पूर्ण करता है तब वह शोध के लाभ को जन जन तक या तत्सम्बन्धी परिक्षेत्र के लोगों को उससे परिचित कराना चाहता है और शोध से प्राप्त दिशा पर विद्वत जनों काप्रतिक्रियात्मक दृष्टि कोण जानना चाहता है ऐसी स्थिति में सहज सर्वोत्तम विकल्प दिखता है -शोध पत्रसम्पूर्ण शोध ग्रन्थ को सार रूप में सरल,बोध गम्य,शीघ्र अधिगमन योग्य बनाने के लिए शोध पत्र का प्रयोग किया जाता है ऐसे कई शोध पत्र,शोध पत्रिकाओं का हिस्सा बन जाते हैं एवम ज्ञान पिपासुओं की ज्ञान क्षुधा की तृप्तीकरण का कार्य करते हैं तथा जन जन तक इसका लाभ पहुँचना सुगम हो जाता है सेमीनार में इन्ही शोधपत्रों का वाचन होता है।
शोधपत्र से आशय (Meaning Of Research Paper )-
शोधपत्र,शोध रिपोर्ट या शोध कार्य का व्यावहारिक प्रस्तुति योग्य सार आलेख है जो परिणाम को अन्तिम रूप में समेट भविष्य की दिशा निर्धारण में सहयोगान्मुख है। प्रो 0 एस 0 पी 0 गुप्ता ने अपनी पुस्तक अनुसंधान संदर्शिका में बताया –
“पत्र पत्रिकाओं (Journals) में प्रकाशित होने वाले अथवा संगोष्ठियों (Seminars) व सम्मेलनों(Conferences) में वाचन हेतु तैयार किये गए अनुसन्धान कार्य सम्बन्धी लेखों को प्रायः अनुसंधान पत्रक (Research Paper) का नाम दिया जाता है।”
इस सम्बन्ध में एक अन्य शिक्षा शास्त्री डॉ 0 आर 0 ए 0 शर्मा ने अपनी पुस्तक “शिक्षा अनुसन्धान के मूल तत्व एवं शोध प्रक्रिया” में लिखा –
“शोध प्रपत्र लिखना कठिन कार्य है क्योंकि यह कार्य आलोचनात्मक,सृजनात्मक तथा चिन्तन स्तर का है। शोध प्रपत्र लेखन में एक विशिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करना होता है जिसमें समुचित क्रम को अपनाया जाता है।”
अतः उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि शोध प्रपत्र सम्पूर्ण शोध के परिणाम व सुझाव से युक्त वह प्रपत्र है जो स्व विचार के स्थान पर तथ्य निर्धारण हेतु तत्पर शोध आधारित दृष्टिकोण से वास्ता रखता है।
शोध प्रपत्र के प्रकार (Types Of Research Paper)-
काल व शोध के प्रकार के आधार पर शोध पत्र के प्रकारों का निर्धारण विद्वतजनों द्वारा किया गया है कुछ विशेष प्रकारों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं –
विवाद प्रिय या तार्किक शोध पत्र (Argumentative Research Paper)
कारण प्रभाव शोध पत्र (Cause and Effect Research Paper)
विश्लेणात्मक शोध पत्र (Analytical Research Paper)
परिभाषीकरण शोध पत्र (Definition Research Paper)
तुलनात्मक शोध पत्र (Contrast Research Paper)
व्याख्यात्मक शोध पत्र (Interpretive Research Paper)
शोध प्रपत्र का प्रारूप (Research Paper Format)-
शोध पत्र लिखने का कोई पूर्व निर्धारित प्रारूप सभी प्रकार के शोध हेतु निर्धारित नहीं है शोध कर्त्ता का सम्यक दृष्टि कोण ही शोध प्रपत्र का आधार बनता है फिर भी अपूर्णता से बचने हेतु सभी प्रमुख बिंदुओं को सूची बद्ध कर लेना चाहिए।दिशा, प्रवाह, अनुभव, अवलोकन सभी से शोध पत्र को प्रभावी बनाने में मदद मिलती है सामान्यतः शोध प्रपत्र प्रारूप में अधोलिखित बिन्दुओं को आधार बनाया सकता है। –
(अ)- भूमिका
(ब)- विषय वस्तु
(स)- मुख्य अंश
(द)- परिणाम व सुझाव
संक्षेप में भूमिका लिखने के बाद विषय वस्तु से परिचय कराना चाहिए यहीं शोध शीर्षक के बारे में लिखकर मुख्य अंश के रूप में शोध प्रक्रिया, उपकरण व प्रदत्त संग्रहण, विश्लेषणआदि के बारे में संक्षेप में लिखते हुए प्राप्त परिणामों को सम्यक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए व इसी आधार पर सुझाव देने चाहिए अपने दृष्टिकोण को थोपने से बचना चाहिए।
अच्छे शोध प्रपत्र के गुण (Qualities Of a Good Research Paper ) या
अच्छे शोध प्रपत्र की विशेषताएं (Characteristics Of a Good Research Paper ) या
अच्छे शोध प्रपत्र के लाभ (Advantage Of a Good Research Paper )-
शोध प्रपत्र लिखना और सम्यक सन्तुलित शोध प्रपत्र लिखने में अन्तर है अतः प्रभावी शोध पत्र लिखने हेतु आपकी जागरूकता के साथ निम्न गुण, विशेषताओं का होना आवश्यक है तभी समुचित लाभ प्राप्त होगा।
(1 )- नवीन ज्ञान से संयुक्तीकरण।
(2 )-शोध कार्यों सम्बन्धित दृष्टिकोण का सम्यक विकास।
(3 )-पुनः आवृत्ति से बचाव।
(4 )-परिश्रम को उचित दिशा।
(5 )-विभिन्न परिक्षेत्र के शोधों से परिचय।
(6 )-समीक्षा में सहायक।
(7 )-विशेषज्ञों के सुझाव जानने का अवसर।
(8 )-शक्ति व धन की मितव्ययता।
(9 )-अनुभव में वृद्धि।
(10 )-प्रसिद्धि में सहायक।
सम्पूर्ण शोध पत्र लेखन के अन्त में सन्दर्भ ग्रन्थ सूची देनी चाहिए।

हिंदी में पुस्तक समीक्षा कैसे लिखें?
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पुस्तक समीक्षा का प्रारूप  (Format of Book Review)
पुस्तक समीक्षा
१.  पुस्तक का नाम :-
२.  लेखक :-
३.  प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्धल  :-
४. प्रकाशन वर्ष :-
५. आवृत्ति :-
६. आई एस बी एन न० :-
७. पुस्तक का मूल्य :-
८. पुस्तक का सारांश:-   (कम से कम २० – २५ लाइन )
९. निष्कर्ष :-  (कम से कम २ – ३ लाइन )
१०. सुझाव :– पुस्तक के बारे में आपकी राय औरआप   पुस्तक के बारे में दूसरों को क्या बताएँगे?

शोशोधार्थी का नाम :-
विषय:-
पंजीकरण संख्या:-

पुस्तक की समीक्षा आप इस फॉर्मेट के अनुसार लिख सकतें हैं और नीचे टिप्पणी में लिखकर भेज सकते हैं।
इसी प्रकार आप रिसर्च आर्टिकल (शोध पत्र) की समीक्षा लिख सकते हैं ।

(यहाँ इस ब्लॉग के माध्यम से इन चीजों पर विस्तृत प्रकाश डाला जाएगा। जिसके लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी। आप भी समय निकाल कर पढा करें तथा आपको (शोधार्थी को) शोध से संबंधित कोई समस्या आ रही है तो टिप्पणी लिख भेजें ताकि समस्या के समाधान हेतु आलेख प्रकाशित किया जा सके।)

14 टिप्‍पणियां:

  1. पी एच डी करने के लिए एक अच्छा मार्ग दर्शन मिल रहा है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी सर यही प्रयास है कि शोधार्थी को शोध से संबंधित कोई समस्या आ रही है तो उसे यथासंभव समाधान मिल सके।

      हटाएं
  2. शक्तिदान सर द्वारा प्रदान की गई यह जानकारी बहुत ही उपयोगी है। इससे हमें दिशा निर्देश मिलता है। सर इस श्रृंखला को जारी रखते हुए इसके अध्यायों के बारे में भी जानकारी देते रहें जिससे थीसिस लिखते समय हम उसका ध्यान रख सकें। यह संग्रहणीय जानकारी है। साधुवाद। राम विचार यादव, शोधकर्ता

    जवाब देंहटाएं
  3. जी हाँ सर आपकी सलाह के अनुसार इसे बिल्कुल नियमित रखा जाएगा ताकि शोधकर्ता को लाभ मिले।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. महत्वपूर्ण शोध सम्बंधित जानकरी ।
    शोधार्थियों के लिए लाभदायक

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्तर
    1. शोध की कार्य योजना का ब्यौरा किस प्रकार लिखना चाहिए। इसे यथा स्थान समझा दिया गया है।

      हटाएं
  7. बहुत सारगर्भित जानकारी शोधार्थी सह नवीन ज्ञान पिपासुओं के लिये

    जवाब देंहटाएं

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